राजनीती का तो पता नहीं मुझे पर ये मुद्दा छात्रों और नेताओं बीच फूटबल का मैदान बना हुआ है. पर किसीने मुझ से नहीं पूछा की मैं क्या सोचता हूँ शायद क्योंकि न तो मैं छात्र हूँ ना ही नेता हूँ. टी.वी पर जो दिखा वही अर्ध्य सत्य मान कर अपना खून खौला रहा हूँ. मैं सच्चा देश भक्त हूँ या नहीं इस पर बहस हो सकती है पर जहां चैनल पर शहीद होने वाले सैनिकों की गाथा चल रही हो और उसी वक्त नीचे की तरफ भारत की बर्बादी के नारे लगाने वालों के नाम चल रहे हो तो मन थोडा ख़राब सा हो जाता है. लेकिन देशभक्त और देशद्रोही की बहस के बीच मैं खुद को क्या मानू ? बड़ा कंफ्यूज होगया हूँ. अभी अभी मैंने हिंदी के लेख में अंग्रेजी शब्द इस्तेमाल कर लिया तो मैं क्या देश द्रोही नहीं हूँ. कल मैंने ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए घूंस दी थी तो मैं क्या देशद्रोही नहीं हूँ. परसों मैं लालबत्ती पार कर गया तो मैं क्या देशद्रोही नहीं हूँ. मैं बहुत सारे छोटे छोटे गलत कम जो शायद देश हित मै नहीं है कर चुका हूँ और शायद आगे भी जाने अनजाने कर दू. लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं की कोई भी ऐरा गैरा मेरे सामने भारत माता की बर्बादी की और कश्मीर की आजादी के नारे लगा देगा और मेरा मूड उसको थप्पड़ मरने का नहीं करेगा. रवीश की शांत बहस से गुजरता हुआ अर्नव की चिल्लम चिल्ली तक पहुँच कर खबरों को इधर उधर खोजते हुए मेरी खुद के मन की टी.वी. भी एक नया चैनल देखने लग जाती है. क्यों कुछ चैनल बोल रहे है की J.N.U वाले देशद्रोही है . और क्यों कुछ चैनल बोल रहे है की नहीं है. किसीने मुझे नहीं बुलाया पूछा भी नहीं. एक नेता , एक छात्र और एक आम नागरिक बताओ किस discussion में बुअलाये गए. कोई भाजपाई था तो कोई कांग्रेसी और कोई कम्युनिस्ट. असली नेता कहा था जो सिर्फ नेता हो नाकि किसी पार्टी का चमचा. छात्रों के नाम पर भी राजनीती की भुर भुरी मिटटी में पैदा होने वाली नयी पौध आई थी. एक छात्र किधर था. और असली आम नागरिक उसका तो साहब पता ही नहीं था. पर मुझे चिड हो रही है क्यों कुछ छात्र राजनीती से प्रेरित होकर पढाई वधाई छोड़ कर फालतू के नारे बजी कर रहे है. और क्यों कुछ प्रोफेसर इनका सहयोग कर रहे है. असलियत तो ये है की हमारा बच्चा अगर इतना ऊधम मचाये क्लास में हम तो गाल पर चांटा मार देते. इनको भी अगर चांटे पड़ जाये गलत तो नहीं है. देश का दुर्भाग्य है की इस घटना को राजनीती का रूप देने कुछ बड़े होशियार और कुछ बड़े बेवकूफ नेता भी वह पहुच गए. सच ये है की जितना ये नेता अपनापन दिखने की कोशिश करते है उतना ही पब्लिक में चिडचिडाहट और बढ़ जाती है. मेरे जैसे आम आदमी के पास ट्विटर के अलावा कुछ और तरीका बचाता नहीं अपनी खिसियाहट निकालने के लिए. मीडिया, नेता , पुलिस , हम और हमारा समाज सब टाइमपास कर रहे है. सुबह काम पर जाते है शाम को रिमोट पर उंगलिया चलाते देशद्रोह और देशभक्त की उठापटक के बीच अपना सर खपाते है.उधर न्यूज़ एंकर भी कभी चिल्ला कर और कभी बिना चिल्लाये भाषण देकर रात को अपने अपने घर सोने चले जाते है. ये देश ऊपर से झांक रहा है और टी.वी. देखने और दिखाने वालों के बीच खुद को सरकारी विज्ञापन जैसा पता है जो बार बार दिखया जाता पर ध्यान किसी का नहीं जाता है.
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