खर्च कर दिए हजारो चहरे पर कभी रोया नहीं,
कितने ही ख्वाब टूटे पर कभी सोया नहीं,
बंद मुट्ठी से फिसल गयी ख्वाईशे,
मैं मुस्कुराता हूँ क्योकि आदमी कभी रोता नहीं
किस्मत आजमाते हुये ,
डूबता ही गया किनारों पर,
सूखी आँखों में प्यास के सहारे,
मैं चलता रहा क्योकि आदमी कभी रोता नहीं.
एक झटके से सामने से गुजर गए,
मैं पास रहकर भी छू न सका,
चुप रहने की कोशिश बेकार है,
मैं चिल्लाता हूँ क्योकि आदमी कभी रोता नहीं.
कड़वी हवाओं का घूंट पीकर,
बंद सीने में जलन सी होती है,
साँसे लेना भी हल्की हल्की चुभन देती है,
मैं जिन्दा रहा क्योकि आदमी कभी रोता नहीं .
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