Saturday 9 April 2016

गतिमान एक्सप्रेस : पहियों पर दौड़ता खुशनुमा डब्बा




मैंने चारों तरफ देखा लाल -लाल डब्बे पान की पीक से और भी ज्यादा लाल होते हुए और शायद साम्यवाद का प्रतीक  नजर नही आरहे थे. एक नीली ट्रेन खड़ी थी. कोट पेंट पहने लोग खड़े थे . महंगे मोबाइल लिए कुछ लोग खड़े थे . और कचौड़ी वाला उनकी ओर झांक रहा था. देश की तरक्की का सबूत गतिमान एक्सप्रेस खड़ी थी. जिसपर जापानी बुलेट ट्रेन की आत्मा हंस रही थी. मैं भी 800 रूपए का टिकट लिए लाल और नीली ट्रेन का अन्तर समझ रहा था. पहला कदम अन्दर रखते ही समझ गया की आप दिल्ली मै ही है. 8.10 बजे चलने वाली ट्रेन में लोग 7.45 बजे से ही इतनी जल्दी बजी कर रहे थे जैसे दिल्ली में लोग मेट्रो के लास्ट स्टेशन पर लिफ्ट में पहले कौन घुसेगा इस पर दौड़ लगते है . 






जगह काफी है , सामान रखने के लिए , चलने के लिए , बैठने के लिए , समझाने के लिए उस तरक्की को जिसमें फटे कपडे पहने जनरल डब्बे के फर्श पर फटी चादर बिछा कर सोने वाले की कोई जगह नहीं . 







            




सीट के बारे मे अगर कहे तो ठीक है पर शताब्दी से थोड़ी सी छोटी . हवाई जहाज की तरह समाने वाली सीट के पीछे से प्लेट बहार निकल के आजाती  है मगर जगह ज्यादा . अपनी कमर के अनुसार सीट को हिला सकते है. पैर रखने के लिए भी व्यवस्था है जोकि मैंने सोची भी नही थी . कुछ सरप्राइज की तरह एक भारतीय रेल के तारीफ़ के पुल बांधती पत्रिका सीट पर पड़ी मिलती है. बोतल रखने का स्टैंड उम्मीद से बड़ा और अब तक का सबसे अच्छा . 




खिड़की के बारे में कहना कुछ खास जरुरी तो नहीं पर हर्ज़ भी क्या है कहने में. शानदार अच्छी खासी बड़ी एक मेट से आधी ढकी, पूरी खुल या बंद भी हो सकने वाली .  अभी तक तो साफ सुथरी . एक दर्पण की तरह जो ठन्डे डब्बे और बाहर  की गर्म दुनिया के बीच के अन्तर को महसूस कराती है. बहार खड़े कुली और अन्दर बैठा मैं एक दूसरे देख सकते है पर ये खिड़की एक जकड़न की तरह उसको और मुझे अलग अलग रोके रखती है.





ठीक 8.10 बजे हल चल होती है. सबकुछ मामूली ट्रेन की तरह ही होता है. वही पटरियां वही ट्रेन वही सब कुछ लगता है की आप तभी नीले कोट पहने अखबार और पानी की बोतल के साथ प्रकट होजाते है . मुस्कान न खोखली न ही आत्मीयता से भरी यानि काफी सधी हुयी उनके चहरे पर होती है. हम पढ़ सकते है हिंदी या अंग्रेजी आपकी चॉइस है . रेलनीर का पानी ही मिलेगा बस इस पर कोई चॉइस नहीं पर ठीक है चलता है अगर पानी साफ है. 


थोडा सा ध्यान  लगाकर सुनेगे तो हलकी आवाज में धीमी धीमी शास्त्रीय संगीत की कोई धुन शायद विदेशियों को इम्प्रेस करने के लिए या कुछ इंटेलेक्चुअल लोगो को संतुष्ट करने के लिए लगाया हो पर कुछ मजेदार नहीं था. फ्री wifi जो मोदी जी से लेकर केजरीवाल के चुनावी धोके का हिस्सा है इस ट्रेन का भी हिस्सा बना है.  कोई फ्री टीवी है जिसमें वीडियो क्लिप्स हैं. 



थोड़ी सी दूर ही चले थे खाने पीने की बात होने लगी . नॉनवेज या वेज और वेज भी दो प्रकार का north indian और south indian. काफी आइटम है . मैंने नॉनवेज मांगा जिसके अन्दर था 
1. ऑमलेट कोई विदेशी type का क्रीम और सब्जीदार 
2.  अमूल मक्खन 
3. जैम 
4. वेज कटलेट के दो पीस
5.  फल जिसमे 1 अंगूर , 4-5 पपीते, २-३ खरबूजे के टुकडे
6. सौस
7. ब्रेड 
8. ट्रोपिकाना जूस 
9. टिसू पेपर, नमक, चम्मच 









कुल मिलाके घाटे का सौदा नहीं लगा. खाने का स्वाद ठीक है  थोडा ठंडा जरुर पर कोई दिक्कत नहीं. जूस आप चाहे तो दुबारा भी ले सकते है मना  बिलकुल नहीं है.  north indian में सारी  चीज़े वही है पर ऑमलेट की जगह पराठे और छोलों ने लेली है. स्वाद अच्छा.  

अभी खाते खाते कोंसी कला पहुच गए . ट्रेन कहीं  रुकी नहीं न धीमी हुयी . बस तेज ही होती गयी . जहाँ से भी निकले लोग कौतहुल वश देख रहे थे जैसे कोई बारात  निकल रही  हो . वैसे कुछ ज्यादा नया भी नहीं था लेकिन हवा बाजी इतनी कमाल की करी गयी है टीवी पर की लोगों ने सोचा होगा चलो निकल रही है तो खड़े होकर देख ही लें. दूर एक जगह ताज एक्सप्रेस भी खड़ी थी रास्ता देने को. एक नयी  तेज ट्रेन को तेज करने के लिए दूसरी पुरानी ट्रेन को स्लो करने की साजिश भर थी .  मुझे लगा गतिमान इसलिए गतिमान है की कोई दूधवाला , साइकिल वाला, डब्बावाला ,ये वाला या वो वाला चेन खीच कर उतर या चढ़ नहीं रहा. अगर ये न हो तो हमारी हर ट्रेन गतिमान ही है. 

 ट्रेन के बाथरूम  और देश के बाथरूम आज के ज़माने का सबसे बड़ा मुद्दा है और इसके लिए मोदी जी को जबरदस्त बधाई .  इस ट्रेन के बाथरूम ओपन नहीं है कचरा बहार नहीं गिरता . यही बहुत तारीफ के काबिल है. बाकि थोडा गन्दा हो या न हो देशभक्त होने के नाते मुझे फर्क नहीं पड़ता. वैसे गन्दा नहीं है. एक दम पुराने ज़माने का सा लग ता है. पर सब कुछ है. एक तरफ अंग्रेजी स्टाइल में दूसरी तरफ हिन्दुस्तानी.  टॉयलेट पेपर, लिक्विड सोप, मग से लगी चेन शायद लम्बी . पक्का लोग डब्बा नहीं  चोरी करेगें  पर कुछ पुराना याद रह भी जाये तो क्या बुरा है. डब्बे से लगी चेन तो विरासत है इसको  रहने दीजिये.  

        मथुरा पहुँच गए नाश्ता भी ख़त्म कर दिया बिना थके , बिना रुके , बिना डरे , बिना लडे काफी पास आगये आगरा के. तभी शुरू हुआ चाय और कॉफ़ी का माहौल . अच्छा रहा ये भी . मेडम जी आयी चाय या कॉफ़ी का पूछा जो भी चाहिए ले लीजिये . 

1. चाय या कॉफ़ी का पानी अनलिमिटेड 
2. चीनी 
3. दूध 
4. पार्ले मारी के दो बिस्कुट और           चाहें तो लेलिजिये 
5. मिलाने के लिए चम्मच 
स्वाद अच्छा जैसा की हो सकता है . घर के चाय जैसा तो नहीं पर बिना बात बुराई करने वाली बात भी  नहीं . 
         ये सब ख़त्म कीजिये की आगरा पहुँच जायेगे. अगर पहुचने का टाइम 9.50 बजे का है. लेकिन लगता थोडा जल्दी आगयी . 5 मिनट पहले. हिंदुस्तान के इतिहास का हिस्सा ये भी होगा की कोई ट्रेन जल्दी आगयी . एक सुकून कि बगल में बैठा यात्री अच्छा ही कहेगा , एक गर्व कि पूरा हिंदुस्तान क्या कहेगा ?, एक डर कि JNU वाला कन्हिया इस ट्रेन के बारे में क्या कहेगा?, एक उत्सुकता कि कोई मौलाना, कोई पुजारी , कोई धर्म का ठेकेदार क्या कहेगा ?और  एक दुःख कि जनरल डिब्बे वाला गरीब क्या कहेगा ?हम सब कुछ न कुछ  अच्छा या बुरा कहेगे .  मगर ये ट्रेन हमारी ट्रेन है . हमारे देश की ट्रेन है बस इतना जरुर कहिये . 


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